बुधवार

नज़रूल इस्लाम

अग्निसेतु, लेखकः विष्णुचंद्र शर्मा
(महान क्रांतिकारी कवि काजी नज़रूल इस्लाम की जीवनी)
उसके शब्द तूफ़ानों की घन-गर्जना थे। उसकी वाणी में महासागरों की करवट और दहकते वनों का ताप था। उसने कहा था - ‘‘मैं विद्रोही हूं, मेरा सिर चिर उन्नत है।’’ और ये शब्द बंगभूमि से उठकर सारे महाद्वीप में गूंजे थे। काज़ी नज़रूल इस्लाम की कविता जन-जन की मुक्ति का उद्घोष बन कर इस महादेश में उमड़ी थी. वह भाषा नहीं, शब्द नहीं, ऊर्जा और शक्ति का जैसे एक प्रचंड प्रवाह थी. और फिर उतने ही कोमल हृदय की गहराइयों से निकले प्रेम-गीत. इस सदी के शुरू में नज़रूल ने क्रांति और प्रेम की जो वीणा बजाई थी, सारे देश ने उसे मुग्ध होकर सुना था. इस महाकवि का जीवन स्वाधीन भारत की एक प्रतीक गाथा है - इस जीवन में विराट परिवर्तनों का एक ज़माना अपनी दास्तान कह रहा है. एक महान पर त्रासद जीवन इस कृति में अपनी पूरी प्रामाणिकता से दर्ज है.
(पृष्ठः 288) ISBN- 81-87524-35-9मूल्य - हार्डबाउंडः 325/ पेपरबैकः 110/

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