कवि-पत्रकार हरि मृदुल का नया संग्रह आया है। संवाद प्रकाशन, मेरठ से। हिंदी में कविताई के आम-ऊबाऊ चलन से अलग हरि मृदुल की कविताएं हमारे दिलों में अपनी जगह घेरती हैं। सुंदर सज्जा और छपाई है और उन कविताओं पर हमारे समय के पांच बेहतरीन कवियों की टिप्पणियां हैं। संग्रह की कीमत है पचहत्तर रुपये। इस पुस्तक को या तो फरवरी 2010 के दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में आप खरीदें या प्रकाशक से ए 4, ईडन रोज़, वृंदावन, एवरशाइन सिटी, वसई रोड (पूर्व), ठाणे, पिन 401208 पर संपर्क करें। प्रकाशक को samvad.in@gmail.com पर ईमेल भी कर सकते हैं :
बाहर के हड़कंप और भीतर की रागात्मकता के द्वंद्व में थिरकती हरि मृदुल के इस संग्रह की कविताओं में डूब जाते और खोते हुए भी धरती और प्रेम को हृदय से लगाये रखने, सहेजने-बचाने की उत्कट बेचैनी है। महानगर के जीवन संघर्षों के बीच ढिबरी की लौ में कवि अपने जनपद के जीवन, मां की प्रतीक्षा, और साल भर बाद छुट्टी पर घर आते सिपाही की पदचाप महसूस करता है। कुमायुंनी लोकगीतों की लय, गंध, आंचलिक पद केवल भाषा-शब्द नहीं रह जाते, सुनाई भी देते हैं : चंद्रकांत देवताले
ढिबरी की लौ
अब घर के काफ़ी नज़दीक पहुंच चुका हूं
हालांकि घंटा भर लगेगा
घर तक पहुंचने में
दो मील का कठिन उकाव पार हो चुका है
अब ज़्यादा चढ़ाई-उतराई नहीं
मैं एक ढुंग में बैठा हूं
बैठने वाले एक खास ढुंग में
जो कि वास्तव में एक छोटी चट्टान है........
इधर अधिकांश हिंदी कविता समाज, राजनीति, वैश्वीकरण आदि से इस कदर वाबस्ता है कि उसे प्रेम के बारे में सोचना अगंभीरता और आत्मुग्ध अय्याशी लगता है। ऐसे में हरि मृदुल की प्रेम कविता का यह संकलन अपने वैविध्य से आकर्षित करता है। इसमें सिर्फ अपना किया गया प्रेम और उसके हर्ष-विषाद, दांपत्य स्नेह और दांपत्य जीवन ही नहीं है, बल्कि प्रेम की कॉमिक त्रासदियां भी हैं। वे भारतीय परंपरा के प्रेमाख्यानों में भी गये हैं तथा अपनी लोक परंपरा में भी। मैं हरि मृदुल को एक समर्थ युवा कवि की तरह देखता हूं। ये प्रेम कविताएं स्वयं उनकी और हिंदी कविता में नयी संभावना की उम्मीद जगाती है : विष्णु खरे
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